मेरे नजरिए से देखो, दुनिया जहान को,
बुढ़ापे में बचपन को, फिर से जी रहा हूं।
खेलता हूं बच्चों के साथ, मैं बच्चा बनकर,
पैंसठ में भी बच्चा सा, बनकर जी रहा हूं।
खाता हूं रोटी, घी नमक- छाछ के साथ,
बासी रोटी का चूरमा, बनाकर खा रहा हूं।
कभी खा लेता हूं दूध में, डाल कर के रोटी,
बुढ़ापे को बचपन सा, मैं जीये जा रहा हूं।
अ कीर्ति वर्द्धन
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