मुश्किलें कितनी भी आयें, तुम कभी डरना नहीं,
चल दिए हो तुम जब आगे, फिर कभी रुकना नहीं।
बनकर रहना तुम सरल, जिस तरह पानी रहे,
रुकावटें हों राहों में, लेकिन ठहर जाना नहीं।
जो भी राहों में मिले, दीन -दुखिया देख लो,
इंसानियत का रास्ता मगर, तुम भूल जाना नहीं।
दोस्त भी तुमको मिलेंगे, दुश्मन भी हैं यहाँ बहुत,
काँटों भरे रास्ते में, मंजिल कभी बिसराना नहीं।
मंजिलों पर पहुँच कर भी, आगे बढ़ते जाना तुम,
नई मंजिल लक्ष्य अपना, थककर बैठ जाना नहीं।
हैं दुवायें हर पल हमारी, सफलता सदा कदमों में हो,
गर्व करना उपलब्धियों पर, घमंड में इतराना नहीं।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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