Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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नारी

 
है रूप दुर्गा का, रूप है ये काली का,
दमकता मुख, मृगनयन मतवाली का। 
माँ की ममता है, प्रेयसी का प्यार भी,
विलक्षण तेज, वीरांगना निराली का।

अ कीर्ति वर्द्धन

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