Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पचपन मे बचपन

 
पचपन मे बचपन-----

पचपन मे बचपन का ख्याल आता है,
मेरा दिल मचल मचल जाता है।
चाहता है खेलना,आँख मिचोली,
दौड़ने भागने को मन ललचाता है।
खाते थे खाना कभी माँ के हाथ से,
चूल्हे की रोटी को मन तरसाता है।
जब चाहा सो गए ममता की छांव मे,
माँ का आँचल बहुत याद आता है।
देर रात बैठे रहते थे दादी की गोद मे,
कहानी सुनाने वाला नज़र नहीं आता है।
सारी ही बस्ती कभी अपनी हवेली थी,
बात करने वाला आज, कोई नहीं पाता है।
रिश्ते थे सबसे ताऊ, चाचा, बुआ के,
अंकल- आंटी मे प्यार नहीं आता है।
लगी चोट पाँव मे खून जब बहने लगा,
दुपट्टे का फाड़ना बहन, अब मुझे भाता है।
पचपन मे बचपन का जब ख्याल आता है,
बचपन मे लौटने को दिल भरमाता है।

अ कीर्तिवर्धन

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