मर चुका हूँ मैं, दुनिया जहान के लिये,
जिन्दा हूँ मगर, खास काम के लिये|
बहता पानी होता है, जागीर प्यासे की,
मत रुख बदल, खारे मुकाम के लिये|
पहूँच दरिया पर, “मै” को डूबा आया,
बाकी बचा हूँ, किसी इम्तिहान के लिये|
चाहता हूँ जीना यूँ ही, यहाँ तन्हा होकर,
अन्जान रहकर भी, पहचान के लिये|
मत तलाशना वजूद मे, अतीत को मेरे,
चाहत कुछ करने की, वर्तमान के लिये|
चिपका रहा अतीत से, दर्द जान न सका
जीना चाहता हूँ, दर्द के अवसान के लिये|
अ कीर्ति वर्द्धन
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