Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पहचान के लिये

 

मर चुका हूँ मैं, दुनिया जहान के लिये,

जिन्दा हूँ मगर, खास काम के लिये|

बहता पानी होता है, जागीर प्यासे की,

मत रुख बदल, खारे मुकाम के लिये|

पहूँच दरिया पर, “मै” को डूबा आया,

बाकी बचा हूँ, किसी इम्तिहान के लिये|

चाहता हूँ जीना यूँ ही, यहाँ तन्हा होकर,

अन्जान रहकर भी, पहचान के लिये|

मत तलाशना वजूद मे, अतीत को मेरे,

चाहत कुछ करने की, वर्तमान के लिये|

चिपका रहा अतीत से, दर्द जान न सका

जीना चाहता हूँ, दर्द के अवसान के लिये|
अ कीर्ति वर्द्धन


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