Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पानी मीठा, प्यास बुझाती जन जन की

 
पानी मीठा, प्यास बुझाती जन जन की, 
हूँ नदी और आरजू रखती समन्दर की। 
नाम है- पहचान भी और उपयोगिता भी,
क्या पाऊँगी, समाकर गोद समन्दर की?

पाना है ईश्क भी, लक्ष्य मेरा है समन्दर,
छोडकर मिठास बस, खारी मै हो जाऊँगी।
न रहेगा नाम मेरा, जब मिलूँगी मै समन्दर,
जहाँ बने गंगा सागर, मै वहाँ मिल जाऊँगी।

अ कीर्ति वर्द्धन

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