Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पत्नी

 
पत्नी को पहचान बहुत, सर्वोत्तम ही चुनती है,
कटा गरीबी मे जीवन, ख्वाब सुनहरे बुनती है।
हूँ बड़भागी चयन हमारा, उनके मन को भाया,
डाँट रही हो भले सामने, मन ही मन तो गुणती है।
हो जाये गर देर मुझे जो, शाम ढले घर आने में, 
दरवाजे के बाहर खडी, अक्सर मुझको दिखती है। 
करा समर्पित जीवन सारा, निज घर को त्यागा है, 
मेरी दीर्घायु की खातिर, व्रत उद्यापन करती है। 

अ कीर्ति वर्द्धन

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