Kirtivardhan Agarwal
पत्थर को काट कर- तराश कर, बुत बना देता हूं मैं,
अपने हुनर से बहुत को भी, भगवान बना देता हूं मैं।
है मेरा शौक पत्थरों से खेलने का, पत्थरदिल शहर में,
मानवता बची रहे, आदमी को इन्सान बना देता हूं मैं।
अ कीर्ति वर्द्धन
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