जानता हूं है वो स्वार्थी, रिश्ता तोडता नहीं हूं,
सम्बन्ध समेट लेता हूं, परन्तु तोड़ता नहीं हूं।
आंगन में लगा वृक्ष, गन्दगी भी फैलाता बहुत,
थोड़ा छांट देता हूं मगर, जड से तोडता नहीं हूं।
है बहुत सी शाखाएं उसकी, छांव में बचपन खेला,
कुछ पर चढ़कर कूदते, चलता रहा ये सिलसिला।
फल- फूल, पत्तियां भी, बचपन में उपयोग की,
उसी वृक्ष की डाल पर, परिंदों का घोंसला पला।
अ कीर्ति वर्द्धन
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