डिग्रियां तो बहुत ली मैंने, अब सम्बन्धों का गणित पढ़ने का प्रयास जारी हैं।
जीत कर हार जाना, खोकर पा जाना,अजीब सा फलसफा जानना जारी है।
कभी देना पड़ता है भाग अपने गमों को परिवार की खुशियों से, खुश रहने को,
और कभी गुणा कर मौन की खामोश रह परिवार के बीच, रिश्ते बचाना जारी है।
सुनने पड़ते हैं ताने भी गूंगा बहरा होने के, मगर मुस्कराहट चेहरे पर रखता हूं,
बस यूं ही लूटाकर अपना अर्थ भी सारा अपनों की खुशी पर, रिश्ते बचाना जारी है।
अ कीर्ति वर्द्धन
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