Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

सर्दियों की धूप

 
जेठ की चिलचिलाती धूप में,
भूलकर गर्मी का अहसास
जाता है पिता काम पर
खेत में मजदूरी पर
अथवा
खींचता है ठेला
बेचता है गली गली घूमकर
फल या सब्जियां।
सोचता है
किस तरह बच्चे पढ़ें
पत्नी व मां बाप
खुश रहें।
सर्दियों की गुनगुनी धूप को तरसती
पत्नी
नहीं सोचती
अपने पति के श्रम का महत्व
अपितु
वह चिल्लाती है
और ताने देती है
अपने दिन भर घर में खटने के
तथा
कुछ ख्वाब अधुरे रहने के
जो देखे थे उसने
अपने बचपन में
जो पूरा न हो सके थे
पिता के घर
उनकी गरीबी के कारण
और समझती रही वह
अपने पति का दायित्व
बिना जाने
पति की सामर्थ्य
तथा
अनदेखा कर उसका श्रम |

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ