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शब्दों से खिलवाड नही कर पाता हूँ,
छन्दों के बन्धन में नही बंध पाता हूँ|
सीधी सच्ची बात तुम्हें मै बतलाऊँ,
वेदो का सार प्रकृति उसमे पाता हूँ|
अर्थ नही प्रधान कभी सम्बन्धों मे,
रिश्तों से अनुबन्ध नही कर पाता हूँ|
मानवता हित सीखा जग मे जीना मरना,
सम्बन्धों से निर्वाह तभी मै कर पाता हूँ|
अ कीर्ति वर्द्धन
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