निराशा के गहन तम में, आशा की जोत जलाता हूं,
कोरोना के कालखंड में, पर्यावरण की बात बताता हूं।
बिखर गये थे परिवार जो, रोजी रोटी के चक्कर में,
हुये इकट्ठा छत के नीचे, प्यार का सार समझाता हूं।
जाने कितने संकट आते, चीन पाक भी आंख दिखाये,
संग हमारे विश्व खडा, भारत की ताकत दिखलाता हूं।
सीमा पर सेना की ताकत, हतप्रभ चीन देख रहा है,
भेड़ खाल में छिपे भेडिये, गद्दारों का नकाब हटाता हूं।
क्या खाना है, कितनी जरूरत, क्यों भेड़ चाल में दौडें,
समय ने जो सिखलाया हमको, उसका सार बताता हूं।
नशे के सौदागर बैठे हैं, उनके संरकक्ष भी ऐंठे ऐंठे हैं,
सत्ता के किरदारों का, रिश्तों से रिश्ता आजमाता हूं।
नकारात्मक जो हम देखें, वर्ष बहुत ही खराब रहा यह,
सकारात्मक बात अगर हो, जीवन की आस जगाता हूं।
अ कीर्ति वर्द्धन
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