Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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यूं कि एक नदी को पी गयी

 
यूं कि

एक नदी को पी गयी, प्यासी पसरी रेत,
दरिया डूबा इश्क में, खुद को उसमें मेट।
करली उसने खुदकुशी, प्रदूषण को देख,
दोषी तो हम ही बने, वृक्ष दिये सब खेत।
तड़प बढ़ी है चीर की, बिन जल ज्यों मीन,
जल बहता था बीच में, बाकी है अब रेत।
धड़कन बन बहता रहा, सदा नदी में नीर,
वृक्ष कटे- नदियां मिटी, बाकी सूखे खेत।

अ कीर्तिवर्धन

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