Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

देख कर मेरी हंसी को

 

देख कर मेरी हंसी को, सोचते हैं खुश बहुत हूं,
गुनगुनाते मुझको देख, सोचते हैं खुश बहुत हूं।
हैं नयन शुष्क और लब भी मेरे खामोश रहते,
खामोशियां देखकर भी, सोचते हैं खुश बहुत हूं।

ओढ़कर नकली हंसी, बहरूपिया बन घूमते,
आदर्श हमको मानकर, बहुत से जन चूमते।
दर्द दिल में क्या, किसको फुर्सत जानने की,
दर्द की सलीब अपनी, निज कंधे रख घूमते।

अ कीर्ति वर्द्धन
 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ