देख कर मेरी हंसी को, सोचते हैं खुश बहुत हूं,
गुनगुनाते मुझको देख, सोचते हैं खुश बहुत हूं।
हैं नयन शुष्क और लब भी मेरे खामोश रहते,
खामोशियां देखकर भी, सोचते हैं खुश बहुत हूं।
ओढ़कर नकली हंसी, बहरूपिया बन घूमते,
आदर्श हमको मानकर, बहुत से जन चूमते।
दर्द दिल में क्या, किसको फुर्सत जानने की,
दर्द की सलीब अपनी, निज कंधे रख घूमते।
अ कीर्ति वर्द्धन
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