फागुन
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| 9:23 AM (8 hours ago) |
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फागुन की मस्ती छाने लगी है,
साली की याद भी आने लगी है|
रंगो की खुमारी अभी छायी नही,
गुंजिया की महक लुभाने लगी है|
झरने लगे पीत पत्र, अब डाल से,
नव अंकुरण की आस आने लगी है|
चटकेंगी कलियाँ, और फूल खिले़गे,
भंवरो को खुशबू महकाने लगी है|
अ कीर्ति वर्द्धन
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