कभी कभी दुश्मन को भी, गले लगाना पड़ता है,
रण क्षेत्र में कभी कभी, पीछे हट जाना पड़ता है।
इसका मतलब नहीं कि, हमने मानी हार यहाँ,
ताकत को संजोकर फिरसे, सबक सिखाना पड़ता है।
कभी कह रहे हमें शिखंडी, कभी नपुंशक कहते हो,
चक्रव्यूह के भेदन में तो, हुनर दिखाना पड़ता है।
सभी विपक्षी ताल ठोकते, मर्यादाओं के तार तोड़ते,
हमको तो अपनों का भी, गुस्सा सहना पड़ता है।
कभी कन्हैया, ओवेशी, आज़म की तुम बात करो,
कुछ संसद की मजबूरी हैं, हाथ मिलाना पड़ता है।
दुश्मन के हमलों को तो, चुटकी में निपटा दें हम,
अपनों के हमलों को हमको, मौन सहना पड़ता है।
नहीं भरोसा तोडा हमने, कुछ हम पर विश्वास करो,
नहीं बचेंगें देश के दुश्मन, जड़ से मिटाना पड़ता है।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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