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सुबह सवेरे की समीक्षा

 

Kirti Vardhan 

10:04 AM (8 hours ago)




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कृति         -सुबह-सवेरे
लेखक      -अ० कीर्तिवर्धन
विधा        -बालकविता संग्रह
प्रकाशक   -विद्यालक्ष्मी प्रकाशन,   
                 मुजफ्फरनगर

 कविता-संग्रह, समालोचना, निबन्ध-आलेख व अन्य कई समसामयिक विषयों पर दर्जनों चर्चित और मानक विधासम्मत कृतियों के रचयिता आनन्द कीर्तिवर्धन का संग्रह 'सुबह-सवेरे' एकलव्य पुस्तकालय को उनके द्वारा भेंट किया गया। एक सामान्य पाठक को प्रथमदृष्टया लग सकता है कि बाल- साहित्य का सृजन एक सहज कार्य है, जबकि वास्तविकता इसके नितांत विपरीत है। जितना मुश्किल एक पहाड़ की तलहटी से उसके शिखर पर चढ़ना होता है, उससे अधिक जोखिम भरा शिखर से पुनः तलहटी पर आना भी होता है। परिनिष्ठित साहित्य के रचयिता को इस विधा में एक तरह से बाल-मनोविज्ञान अनुरूप अपने शब्द-विषय-शिल्प को रचना होता है। एक प्रौढ़ को पुनः अपने मानस को पुनः 'घुटरुनी चलत रेनु तन मंडित मुख दधि लेप कियो' की अवस्था लाना पड़ता है, जो एक दुसाध्य क्रिया है। इस कृति के आद्योपांत अध्ययन के पश्चात मुझे यह कहते हुये खुशी हो रही है कि श्री कीर्तिवर्धन अपने इस प्रयास में शत-प्रतिशत सफल रहें है। वे अपने बाल पाठकों को शब्द-शिल्प की जटिलताओं, विस्तार की बोझिलताओं के भार से बिल्कुल नहीं दबाते। यहाँ तक कि पुस्तक की भूमिका भी केवल 7-8 पंक्तियों में ही समेट देते हैं। उनकी भूमिका भी ऐसी है कि जैसे कोई किसान खेत को फसल की बिजाई से पहले अपनी भूमि के बड़े मन से तैयार कर रहा हो। वे प्रत्येक स्थान पर किसी भी साहित्यकार समीक्षक-समालोचक से बेख़बर सीधे बाल-पाठकों की मनोभूमि से संवाद करते, पोषण-रोपण करते प्रतीत होते हैं। कृति में आठ-आठ पंक्तियों की सरस सुबोध बाल जीवन की रचनाएँ संकलित है। कीर्तिवर्धन बाल-मनोविज्ञान या अध्यापन आदि व्यवसाय से सीधे न जुड़े होने के बाद भी इसमें भली-भाँति पारंगत प्रतीत होते हैं। उन्होंने इस कृति की किसी भी रचना में प्रत्यक्ष सीखना-सीखाना आदि उपदेश पद्धति का उपयोग नहीं किया है। वे मानते हैं कि जिस प्रकार अग्नि को प्रदीप्त किया जाए उष्णता स्वतः प्राप्त होती है, उसी प्रकार यदि हम बच्चों से सकारात्मक भाव की अच्छी बातें करेंगे तो वे स्वतः ही अच्छी बातें सीख जाएंगे। इसी लिये वे बच्चों को सुबह जल्दी उठने, पशु-पक्षियों-वृक्षों से मित्रता करने, माता-पिता-गुरुजनों का आदर करने, अहिंसक बननें, राष्ट्रीय प्रतीकों के मान-सम्मान की रचनाओं से कृति को सज्जित करते हैं। बाल-मन पर चित्रों का अपना अमिट प्रभाव होता है, इसी कारण श्री आनंद जी ने अपने बाल-पाठक की भाव-भूमि को उर्वर बनाने के लिये प्रत्येक कविता के कथ्य से सन्दर्भित चित्र को शीर्षक के साथ छापा है। प्राथमिक स्तर के कृति-लक्षित बाल-पाठक लंबे छन्दों की तथा लम्बी कविताओं में अरुचि दिखाते हैं। इस कृति को पढ़ते हुए उन्हें ऐसा बिल्कुल नहीं लगेगा क्योंकि प्रत्येक रचना छोटी-छोटी 8 पंक्तियों में अपने समस्त कलेवर को समेटती हुई अपनी पूर्वपीठिका, चरम, कथ्य, लक्ष्य सभी कुछ संधान कर लेती है। मात्र 8 पंक्तियों के इस वामनी शिल्प के कारण यह दिया जाए कि महर्षि अगस्त्य के समान आनंद कीर्तिवर्धन ने अपनी अंजुरी में सागर को समेट लिया है तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
वर्तमान तकनीक के युग में जब प्रत्येक बच्चा टी.वी, मोबाइल और इंटरनेट के आकर्षक किन्तु अंधकूप की और खींचा चला जा रहा हो तब उस युग में ऐसी कृतियाँ शिक्षक-अभिभावकों के लिये डूबते की तिनके के सहारे के समान प्रतीत होती हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि अन्य लेखक-कवि भी इस प्रकार के प्रयासों का अनुकरण करें। अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों को ऐसी उपयोगी पुस्तकें पढ़ने को उपलब्ध करवाए।
मैं आनंद कीर्तिवर्धन के इस 'सुबह-सवेरे' के स्तुत्य प्रयास का अभिनन्दन करता हूँ, उनके सुदीर्घ, यशस्वी, सुफलित, स्वस्थ जीवन की कामना करते हुये वाग्देवी से प्रार्थना करता हूँ कि वे उनको इस प्रकार की अनेक कृतियों के रचयिता होने का कृपापात्र बनाये।
पुनश्च शुभकामनाएं।

मनोज भारत,
एकलव्य पुस्तकालय,
भारत शिक्षा सदन, हनुमान गेट, भिवानी - 127021
फो. 94674 80000

 

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