Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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भूत

 

 

ए.टी.ज़ाकिर (रचनाकाल: १९७१)

 

 

 

एक भूत से मुलाकात हो गयी,
अच्छी – ख़ासी बात हो गयी |
हमने उसको भूत पुकारा,
गुस्से में वो यों फुफकारा |
नेचर ने –
आदमी का पंजा आगे को मोड़ा है,
उसका नाता निरंतर प्रगति से जोड़ा है |
भूतों को पाँव पीछे घुमा दिया है,
उन्हें अतीतजीवी बना दिया है |
किन्तु –
क्या मानव होने के बाद भी,
तुम सदा अतीत को नहीं रोते ?
व्यर्थ की पुरानी यादों में,
अमूल्य जीवन नहीं खोते |
मुझे भूत कहने से पहले,
जाओ और चुल्लू भर पानी में डूब मरो,
भूत तो तुम हो !

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