Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सावित्री-यमराज सम्वाद !

 

 

ए.टी.ज़ाकिर

 

 

 

सावित्री और सत्यवान ने पुन: जन्म पाया,
हमेशा की तरह फिर से सावित्री ने सत्यवान को गँवाया |
सावित्री रो रही थी,
अपना मेकअप भिगो रही थी |
कि चारों ओर काले-काले बादल छा गये,
एक “एयरफोर्स वन” के अमरीकी प्लेन से,
यमराज वहाँ आ गये |
और बोले –
मैं इसे लेने आया हूँ – इसे ले कर जाऊंगा,
बदले में जो मांगोगी,
तुम्हे दे कर जाऊंगा |
अब मुझे अधिक समय नहीं गँवाना है,
सत्यवान की आत्मा को अपने साथ ले जाना है |
सावित्री ने कर दिया इन्कार,
यमराज की सारी रिक्वेस्ट हो गयीं बेकार |
उन्होंने चालाकी का तीर चलाया,
और अपना आशीर्वाद सावित्री को सुनाया |
“पेट्रोल की क़ीमत की तरह रोज़ तुम्हारी ख़ुशी बढ़े,
तुम्हारी हर इच्छा परवान चढ़े |
तुम्हारे ग़मों का पारा भारतीय रुपये जैसा,
नीचे गिरता जाये |
कभी भी तुम्हारे मन में,
उदासी न आये |
बस मुझे मेरा कर्तव्य निभाने दो,
और सत्यवान की आत्मा को साथ ले जाने दो” |

 

सावित्री के दिमाग में पुराना वाला आईडिया आया,
उसने सत्यवान की ओर अपना हाथ हिलाया |
“ठीक है ! यमराज जी, दीजिये मुझे वरदान,
कि मेरे दस पुत्रों का पिता,
बने मेरा सत्यवान |
बताईये अब आप कैसे इन्हें ले जायेंगे,
और मुझे जन्म-जन्मांतर का दुख दे जायेंगे” |
यह सुनकर यमराज की बत्तीसी खिल गयी,
उन्हें मन माँगी मुराद मिल गयी |
उन्होंने अपनी जेब से पिग्गी बैंक का एक डिब्बा निकाला,
और सत्यवान की आत्मा को फोल्ड करके उसमें डाला |
फिर बोले –
तथास्तु !
मैं आत्मा को ले जा रहा हूँ,
और इसका शरीर तुम्हे दे जा रहा हूँ |
इसका डी.ऐन.ए भुनाओ,
और दस क्या सत्यवान के,
१०० पुत्रो की माता बन जाओ |

 

 

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