Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

हिंदी का विकास

 
हिंदी का विकास

(विश्व हिन्दी दिवस पर)

अंग्रेजी का परचम फहराते जो घर घर में,
उसको ही महान बताते जो सारे जग में 
उनको मैं अंग्रेजी का सार बताना चाहता हूँ,
भूली बिसरी अंग्रेजी की औकात बताना चाहता हूँ । 
अंग्रेजी तो अंग्रेजों के घर भी पिछड़ों की भाषा थी,
फ्रेंच में लिखना पढ़ना, सबकी अभिलाषा थी 
आज भी अंग्रेजी का आधार, फ्रेंच ही भाषा है,
वर्तमान में अंग्रेजी नहीं बनी विश्व की भाषा है । 
चालीस प्रतिशत शब्द फ्रेंच के इसमे शामिल,
व्याकरण का अंग्रेजी को कोई बोध नहीं है ।
नहीं लिखे गए बाइबिल और ग्रन्थ अंग्रेजी में,
नहीं पूर्व का साहित्य से इसका कोई नाता है । 

हिंदी भारत की राष्ट्र भाषा है, हिंदी विश्व भाषा है, भले ही आधिकारिक रूप से हिंदी को भारत में राष्ट्र भाषा तथा संयुक्त राष्ट्र में अधिकृत भाषा  का दर्जा अभी तक प्राप्त न हुआ हो। 

सन 1843-1844 में अंग्रेज विद्वान थॉमसन ने लिखा था --हिंदी भारत की जन-जन की भाषा है अतः जनता के साथ सभी काम हिंदी में किया जाए।

इससे  थोड़ा पूर्व मिस्टर बटर्वर्थ बेली तथा फ्रेडरिक जॉनशोर ने कहा था -- हिंदी शक्तिवान और समर्थ है, हिंदी भारत की भाषा है। 

इंग्लैण्ड के विद्वान डॉ मृेगेसर  अनुसार -- हिंदी दुनिया की महानतम भाषा है। भारत को समझने के लिए हिंदी ज्ञान अनिवार्य है। 

फादर कामिल बुल्के ने यहाँ तक कहा कि -- विश्व में कोई ऐसी विकसित एवं साहित्यिक भाषा नहीं है जो हिंदी की सुगमता से मुकाबला कर सके। 

कहने  तात्पर्य है कि सम्पूर्ण विश्व के विद्वानों ने कालान्तर से ही हिंदी के महत्त्व और महत्ता को स्वीकारा है।  यह हमारी विडम्बना ही कही जायेगी कि सम्पूर्ण विश्व में भारत की राष्ट्र भाषा के रूप में हिंदी का ही नाम लिया जाता है मगर अपने ही देश में आज़ादी के 68 वर्ष बाद भी हिंदी राज-भाषा के पद पर ही स्थित है। आज अमेरिका के राष्ट्रपति श्री बराक-ओबामा अपने देश में हिंदी के विकास के लिए साढ़े पाँच करोड़ अमेरिकी डॉलर का प्रावधान करते हैं तो वह हिंदी व हिन्दुस्तानियों के महत्त्व व सामर्थ्य को समझते हैं। 

आज़ादी के आंदोलन में पूर्व से पच्छिम व उत्तर से दक्षिण  सभी आंदोलनकारियों एवं नेताओं ने हिंदी के महत्त्व  स्वीकारा था।  हिंदी आज़ादी  प्रमुख की भाषा बनी। विडम्बना ही  कही जायेगी कि चंद स्वार्थी अंग्रेजी दा नेताओं के चलते राष्ट्र भाषा नहीं बन सकी। 

भारत में अंग्रेजी के पक्षधर, विकास का मापदंड अंग्रेजी, विज्ञान का आधार अंग्रेजी, नौकरी के लिए अंग्रेजी का गुणगान करने वाले मैकाले के मानस पुत्र कुछ काले भारतीय जिनकी संख्या कुल 3-4 %  होगी, से पूछना चाहता हूँ कि किस आधार पर अंग्रेजी का   गुणगान करते हैं ? आज भी सम्पूर्ण विश्व में अंग्रेजी बोलने -पढने-लिखने वालों की संख्या कुल 40 करोड़ है यानी विश्व जनसंख्या का केवल 4%, जबकि हिंदी बोलने-लिखने  पढने व समझने वालों  की जनसंख्या 190 करोड़ है जो कि विश्व में किसी भी भाषा को बोलने वालों में सर्वाधिक है। 

एक बात उन लोगों के लिए जो अंग्रेजी को विश्व भाषा बताते हैं ---अंग्रेजी दुनिया के केवल 40 देशों में ही बोली व समझी जाती है जबकि हिंदी 175 देशों में अपने पाँव पसार चुकी है। दुनिया के 160 देशों  तो अंग्रेजी की कोई पहचान ही नहीं है। संयुक्त राष्ट्र की भाषा सूची में भी रुसी, स्पैनिज, फ्रेंच, डच, मंदारिन आदि में भी अंग्रेजी 12 वें पायदान पर है। विश्व के 175 देशों में हिंदी पढने, लिखने, सीखने  बोलने की व्यवस्था है। हिंदी  का शब्दकोष भी 250000 शब्दों का विशाल भण्डार है जो किसी एक भाषा का विश्व  में सबसे बड़ा कोष है।  अमेरिका में हावर्ड, पेन,  मिशिगन, येल सहित 65 से अधिक  विधयालयों में हिंदी का पठन-पाठन व अनुसंधान जारी है। रूस में प्रारंभिक स्तर से विश्व विद्ययालय स्तर तक हिंदी अध्यन जारी है। बल्गारिया, फ़िनलैंड,  डेनमार्क,जापान, चीन,  नेपाल,बांग्लादेश, पाकिस्तान, मॉरीशस, सूरीनाम, त्रिनिदाद, टोबेगो,  गुमाना,ब्रिटेन, जर्मनी,  क्यूबा, कोरिया, किस-किस की  करें सभी जगह के  विश्व विधालयों में हिंदी के अध्यन केंद्र हैं। गीता प्रेस गोरखपुर की पुस्तकों की पहुँच वहाँ भी घर-घर  तक है। अनेकों हिंदी पत्रिकाएं सभी देशों से प्रकाशित हो रही हैं। विश्व  हिंदी न्यास, अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, विश्व हिंदी समिति जैसी अनेक वैश्विक संस्थाएं विदेशों से ही संचालित हैं। रूस, अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस,  जापान, जर्मनी, आस्ट्रेलिया, चीन, स्वीडन, नार्वे, चेकोस्लोवाकिया, पोलैण्ड, हंगरी, हॉलैण्ड, आदि देशों ने अपने यहाँ हिंदी  विश्व  भाषा के रूप में स्वीकार किया और अपने यहाँ के नागरिकों को हिंदी पढने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं। 

इतना सब कुछ होने के बावजूद हिंदी को भारत में राष्ट्र भाषा का तथा संयुक्त राष्ट्र में अधिकृत भाषा का दर्जा नहीं मिल पाने का प्रमुख एक मात्र कारण रहा है आज़ादी के बाद से देश  सत्ता पर काबिज होने वाले अंग्रेजी पसंद राजनेता। वह राजनेता जिनकी शिक्षा-दीक्षा विदेशी परिवेश में हुयी, जिनका  रहन-सहन और खान-पान विदेशी था, मानसिकता औपनिवेशवादी  थी, जिन्होंने सत्ता की भाषा को जनता की भाषा से अलग रखा ताकि जनता उनके कार्यों में हस्तक्षेप न कर सके। बावजूद इसके हिंदी अपने गुणों, सामर्थ्य  सम्प्रेषणीयता की सरल -सुबोध भाषा होने के कारण विश्व पाताल पर अपना विस्तार करती रही। 

हिंदी के प्रचार-प्रसार का जितना श्रेय इसकी सरलता -सहजता- सम्प्रेषणीयता को है उससे अधिक भारतीय सिनेमा व दूरदर्शन को है। यह भी आश्चर्यजनक है कि भारतीय हिंदी सिनेमा का विकास सभी अहिन्दी भाषी राज्यों  हुआ है। हिंदी के विकास में अहिन्दी भाषी राज्यों द्वारा अपनाया गया त्रिभाषा सिद्धांत  भी महत्वपूर्ण कड़ी रहा। वर्तमान में वैश्विक गाँव की परिकल्पना तथा बाज़ारवाद ने सम्पूर्ण विश्व को हिंदी  प्रति आकृषित किया है।  

आज हिंदी के लिए सौभाग्य का अवसर है जब देश के प्रधानमन्त्री तथा उनका मंत्री मंडल हिंदी प्रेमी व समर्थक हैं जिन्होंने कार्यालयों में हिंदी में काम  प्रारम्भ कर दिया है और घोषणा की है कि संयुक्त राष्ट्र व विदेशी राजनीयकों से बातचीत में भी हिंदी का  ही प्रयोग करेंगे।  यह हिंदी के लिए सकारात्मक सन्देश है। 

हमारा मानना है कि -

राष्ट्र का सम्मान करना चाहिये,
निज धारा का मान करना चाहिये।
सीखिये भाषाएँ, बोली, सारे विश्व की, 
राष्ट्रभाषा पर अभिमान करना चाहिये।

जो लोग विज्ञान के लिए अंग्रेजी की अनिवार्यता की वकालत करते हैं  वह यह समझ लें कि जर्मनी, जापान, रूस और चाइना ने  यहां विज्ञान का विकास अंग्रेजी में नहीं किया अपितु हमारे संस्कृत  ग्रंथों में लिखे गूढ़ रहस्यों को समझकर अपनी भाषा में अनुवादित करके  किया है।  हमारा विज्ञान कितना समृद्ध है? इसे जानने के लिए वेदों व पुराणों के अध्यन की जरुरत है।  पूछिए जर्मनी के वैज्ञानिकों से जो आज भी हमारे ग्रंथों  शोध कर रहे हैं। जानिये नासा के वैज्ञानिकों से जिन्होंने नासा केंद्र पर भगवान अर्धनारीश्वर की मूर्ति  स्थापना की है तथा प्रतिदिन संस्कृत श्लोकों से आराधना करते हैं। 

विश्व की इस समृद्ध भाषा को संयुक्त राष्ट्र की अधिकृत भाषा का दर्जा तो इस बार मिलना सुनिश्चित दिखाई दे रहा है, आवश्यकता इसे देश में भी राष्ट्र भाषा घोषित करने की है। 

और अंत में हिंदी के लिए ---

खुली आँखों से देखता हूँ बस  सपने तेरे ,
तेरी चाहत  जन-जन में फैलाना चाहता हूँ। 
संयुक्त राष्ट्र भाषा बनाने का मकसद समझ 
विश्व पटल पर परचम फहराना चाहता हूँ। 
जानता हूँ तेरी चाहत उड़ने की खुले गगन में 
तेरे सपनों को बाज़ से सशक्त पंख देना चाहता हूँ। 
मेरी चाहत, मेरा सपना,  मेरा प्यार यही तो है 
वेद ऋचाओं का सार दुनिया को बताना चाहता हूँ। 
सभ्यता, संस्कृति, मानवता सब भारत की देन है 
भारत को फिरसे विश्व गुरु बनाना चाहता हूँ। 
संस्कृत  को देव वाणी शास्त्रों में बताया गया 
हिंदी की सरलता को विश्व भाषा बनाना चाहता हूँ।  

डॉ अ कीर्तिवर्धन
विद्यालक्ष्मी निकेतन 
53-महालक्ष्मी एन्क्लेव 
मुज़फ्फरनगर -251001 (उत्तर-प्रदेश)
08265821800 


Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ