प्रिसीला के लिए. .................. by
अँद्रै कुमार
अपने कमरे की खिड़की से मैं ऐसी जगह देख सकता था, जहां एक गरीब, अकेला, बीमार और बेकार आदमी रहता था। मैंने ‘जगह’ लिखा और यही सही है, क्योंकि जिस आश्रय में वह भिखारी रहता था, उसे ‘घर’ कहा ही नहीं जा सकता। यह एक पुराना मकान था, जिसके अंदर और बाहर भित्ति-चित्र लगे थे। उसकी खिड़कियों के चौखटे नहीं थे और उसकी टूटी फूटी छ्त गिरनेवाली थी। घर के अंदर कूड़ा-करकट था, जिसे उसने, मुझे लगता है, अपने सोने लायक जगह बनाने के लिए एक कोने में इकट्ठा कर के रख दिया था।
वह चिड़चिड़ा और शराबख़ोर आदमी सड़कों पर घूम-घूम कर भीख माँगता और सस्ते काफ़ीघर में अल्प भोजन करता था। होटल अथवा शराबघर में उठते बैठते वक्त, वह अन्य ग्राहकों का भोजन भी चोरी कर लेता था।
लोग कहते हैं कि रोटी या सूप ख़रीदने के बजाय वह पिय्यकड़ भीख में मिले पैसों से शराब ख़रीदता था। और-तो-और, वह अकसर क़र्ज़ की शराब पीता था और क़र्ज़ अदा न करने के कारण दुकानदारों से झगड़ा मोल लेता। आख़िर में शराबघर के मालिक उसे शराबघर से शराबघर से बाहर निकाल देते थे।
एक दब्बू काला दोगला कुत्ता उस आदमी का साथी था, जो उसके पीछे-पीछे चलता था. उस आदमी के साथ कई दूसरे कुत्ते भी चलते थे, लेकिन सिर्फ़ वही एक कुत्ता था, जो सदा उसके साथ रहता था और उसी के साथ सोता भी था।
मुझे यह समझ में नहीं आता कि कुत्ता भिखारी के साथ क्यों रहता था जबकि चिड़चिड़ा होने की वजह से वह कुत्ते के साथ बेरहमी से पेश आता था और बेवजह उसे ठोकरें मारता था। मकान के कोने में, वह कुत्ते को घंटों बांधे रखता और कंबल पर पेशाब निकल जाने की स्थिति में कुत्ता बेहद मार खाता था। भिखारी ने कुत्ते को शायद ही कभी भोजन दिया हो।
अपने मालिक के दुर्व्यवहार के वकत कुत्ता दर्द से कराह उठता और उसका रुदन सुन कर मुझे बहुत दुख होता था; भूखा कुत्ता आदमी से भोजन की उम्मीद रखता होगा। एक तरह से मैं समझ सकता हूँ कि आदमी कुत्ते को खाना क्यों क्यों नहीं देता था। जब कभी उसे थोड़ा-बहुत खाने को मिलता, वह गपागप खाने में जुट जाता; कुत्ते की भीख माँगती हुई आँखें उसे शायद दिखाई ही नहीं देतीं।
कुत्ता बेशक दुखी था क्योंकि उसका पेट और दिल दोनों ख़ाली थे। मैं सोचता हूँ कि अगर आदमी कुत्ते से थोड़ा प्रेम करता तो वह इतना अप्रसन्न न रहता और उसे अपनी भूख इतना न सताती। वह बदनसीब कुत्ता बहुत ही दब्बू और प्यारा था।
तकरीबन तीन हफ़्ते पहले मैंने सुना कि भिखारी मर गया। मैंने सोचा कि उसकी भुखमरी, गरीबी और विषाद ख़त्म हो गए। उसे एक स्थानीय कब्रिस्तान में दफ़ना दिया गया। उस वकत से वह मकान, जिसमे वह रहता था, ख़ाली पड़ा था; कुत्ता वहाँ कभी नहीं दिखा। मैं हैरान था कि दब्बू काला कुत्ता कहाँ गया होगा?
काम पर जाते वकत मैं रोज़ उस कब्रिस्तान के सामने से होकर गुज़रता था। एक दिन, जब मैं उसके फाटक के सामने से गुज़र रहा था तो मुझे एक काली सूरत दिखाई दी जो एक कब्र के ऊपर पड़ी थी। जिज्ञासावश, मैं अंदर पहुंचा। अरे, यह तो वही बेचारा कुत्ता था! अपने मरे हुए मालिक की कब्र पर वह एक ऐसी ग़मज़दा शक्ल लिए पसरा था, जिसे देखकर कोई पत्थर दिल भी रो दे।
अब जब कभी मैं कब्रिस्तान के सामने से गुज़रता हूँ, मुझे वह कुत्ता उसी कब्र के आस पास दिखाई देता है, जैसे उसे विश्वास हो कि उसका मालिक एक न एक दिन ज़रूर लौटेगा; अपने दिल में उसके लिए थोड़ा सा प्यार लेकर।
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY