अलका सैनी
मेरे भीतर भी शब्दों के
कई महासागर उफन रहे ,
आत्म- मंथन के वास्ते
सुबक रहे ,
शिकायतों , नाराजगी के
द्वंद्व पनप रहे ,
दिल के भरे बादल
कोने में दुबक रहे ,
तुम्हारे शब्द बाण, सीने
के लहुलुहान घाव रिसने लगे ,
कभी सोचूं , कैसे छूटूं ?
इस जी के जंजाल से ,
बुरी फंस गई
प्रेम के मायाजाल में ,
कई बार कसम खाई
मन ही मन रुकने की ,
मोबाइल बंद करने की ,
फेसबुक डी. एक्टीवेट करने की ,
प्रोफाइल फोटो उड़ाने की ,
आई. डी. ब्लोक करने की ,
खुद को ही पोक करने की ,
अगले ही पल
सांस रुकने लगी ,
कैसा अनोखा ये मायाजाल !
हर पीड़ा , दुःख को भांप ,
शब्दों के पुलिंदों को ढांप ,
प्यार हर शब्द पर हावी ,
हर आत्म -मंथन में भारी ,
प्यार का सागर और गहरा जाता है ,
विष पीकर भी अमृत नजर आता है
ये मायाजाल !!!
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