एक व्यक्ति ने ईश्वर की तपस्या करते हुए अपनी सारी जवानी निकाल दी। अधेड़ावस्था पार करते हुए वह वृद्धावस्था पर जा पहुँचा, तब कहीं जाकर ईश्वर उस पर प्रसन्न हुआ, और उसने उसे दर्शन देकर पूछा-‘बता तुझे क्या वरदान दूँ?’
‘‘प्रभु मेरे मन में तो सिर्फ़ एक नारी देह की कामना ही रह गई है अब तो...’’उस व्यक्ति ने विनीत भाव से कहा ।
‘अरे मूर्ख ! नारी देह तो तू सांसारिक रहकर भी प्राप्त कर सकता था। तूने बड़ी भूल कर दी, जो इसके लिये तप में अपना जीवन निरर्थक कर दिया ।’ ईश्वर ने उसे फटकारा ।
‘‘प्रभु मेरे तप का उद्देश्य कुछ और ही था, पर मुझे अपनी इस भूल का अहसास हो गया है कि, सांसारिक जीवन से पलायन कर कुछ भी प्राप्त नहीं किया जा सकता । इसीलिए प्रभु मैं अपनी भूल को सुधार कर अपना बचा हुआ जीवन सार्थक बनाना चाहता हूँ ।
6 नर्वस ब्रेकडाऊन
उस आदमी ने मिट्टी की एक प्रतिमा गढ़ी । अपने शिल्प को वह आत्म-मुग्ध होने के भाव से मुस्कुराकर देखता रहा...देखता रहा । अचानक उसे महसूस हुआ कि, वह प्रतिमा भी मुस्कुराने लगी है। प्रतिमा को मुस्कुराता देखकर वह डर गया और वह उस प्रतिमा के चरणों में सिर झुकाकर बैठ गया । अब आत्म-मुग्ध होने का भाव खत्म हो गया था। उसने उस प्रतिमा के चरणों में बैठे-बैठे ही उपर नज़र डाली, तो वह प्रतिमा उसे अपने विराट-स्वरूप में नज़र आने लगी, और वह स्वयं को उसके समक्ष बौना महसूस करने लगा, और उसने उसे सर्वशक्तिमान मानना शुरू कर दिया और एक अनजाने भय से ग्रस्त हो अपनी रक्षा के लिए उसे पुकारने लगा। फिर अचानक उसे महसूस हुआ कि उस प्रतिमा ने उसके सर पर हाथ रख दिया है, अब उसने प्रतिमा की पूजा-अर्चना प्रारंभ कर दी ।
...वह आदमी और वह प्रतिमा आज भी एक दूसरे के आश्रित बने हुए यत्र-तत्र-सर्वत्र नज़र आते रहते हैं ।
आलोक कुमार सातपुते
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY