उस दंग़ाग्रस्त शहर में कर्फ़्यू लगा हुआ था । शहर सेना के हवाले कर दिया गया था। दंग़ाइयों को देखते ही गोली मार देने के आदेश थे। एक पत्रकार ने सेना के मेज़र से जानना चाहा कि वे दंगो़ं को किस तरह से रोकेंगे। इस पर मेज़रसाहब का ज़वाब था- ‘‘यदि दंग़ाइयों ने उत्पात मचाने का प्रयास किया, तो हम उन पर कार्रवाई करेंगें। यदि उन्हांने किसी के घर में आग़ लगा दी, तो हम उन पर कड़ी कार्रवाई करेंगे, और यदि इससे आगे बढ़कर वे हत्याएँ करने लगें, तो हम उन पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई करेंगें।’’
‘आप तो नेताओं की भाषा बोल रहे हैं ।’ पत्रकार ने विस्मित भाव से कहा ।
‘‘भई हम भी क्या करें, लोकतांत्रिक देश के सैनिक जो ठहरे...।’’ मेज़रसाहब ने ज़वाब दिया।
‘तो भी...इस माहौल में जहाँ दंग़ाईयों को देखते ही गोली मारने के आदेश हुए हैं, आपके मुँह से तो एक लाइन में ज़वाब निकलना था-गोली मार देंगे ।’ पत्रकार ने कहा।
‘‘अब आप अपनी बकवास बंद करिये, वरना हम आपको गोली मार देंगें । मेज़रसाहब ने खीजकर कहा
आलोक कुमार सातपुते
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