उस बस स्टैण्ड में तीन दयालु व्यक्ति, और एक कहीं से भी दयालु नहीं लगने वाला व्यक्ति बैठा था । इतने में एक बुढ़िया अपने दोनों बेटों के विक्षिप्त होने के कारण दाने-दाने को मोहताज़ होने की जानकारी देते हुए रोने लगी । इस पर पहले दयालु ने कहा-‘‘तुम लोग भूखे मर रहे हो इसका यह अर्थ हेै कि, राज्य नीति-निर्देशक तत्वों का पालन नहीं कर रहा है, मंै इस बात को विधानसभा और लोकसभा तक ले जाऊँगा ।’’
दूसरे दयालु ने कहा-‘‘ये तुम्हारे गांॅव वालांे के लिये शर्म की बात है कि उनके होते हुए एक परिवार भूख से मर रहा है ।’’
तीसरे दयालु ने कहा-‘‘माई अब रोना-धोना बंद करो । मैं बड़ा ही भावुक क़िस्म का आदमी हँू । तुम्हंे रोता देखकर मुझे भी रोना आ रहा है ।’’
चैथा व्यक्ति निस्पृह भाव से उनकी बातें सुनता रहा, और फिर उठकर वहाँ से चला गया । इस पर एक दयालु ने कहा-देखो तो लोग दो शब्द सांत्वना के भी नहीं बोल सकते।
कुछ देर बाद वह व्यक्ति एक थैले में दस क़िलो चाँवल लेकर आया, और बड़ी ही ख़ामोशी से उसने उस बुढिया को थैला सांैप दिया। अचानक तीनों दयालुओं का हाथ अपने-अपने गालांे तक पहुँच गया । उन्हंे ऐसा लगा, जैसे किसी ने उन्हें झन्नाटेदार थप्पड़ रसीद कर दिया हो ।
आलोक कुमार सातपुते
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