बस स्टैण्ड पर हाॅफ़ पैंट पहने हुए उस नाटे क़द के पाग़ल को वहाँ पर खड़े टैक्सी ड्राइह्नर परेशान कर रहे थे। वह पाग़ल उन्हंे गुस्से में माँ-बहन की गालियाँ देता, और वे सब हंे...हें...करते हुए दाँत निपोर देते। यह सिलसिला काफ़ी देर तक चलता रहा। इतने में पढ़े-लिखे सभ्य से दिखने वाले एक व्यक्ति ने सबको डाँटकर वहाँ से भगा दिया। मैंनेे सोचा कि, चलो कोई तो सामने आया उसे प्रताड़ना से बचाने, पर मैं यह देखकर दंग रह गया कि वह व्यक्ति उस पाग़ल का सिर पकड़कर अपने साथ लायी हुई ग्रीस से उसके चेहरे की पुताई करने लगा । वह पाग़ल कातर स्वरों में चिल्लाता रहा और साथ में उसे गालियाँ भी देता रहा, इस पर उस सभ्य से दिखने वाले व्यक्ति ने भड़ककर उसकी हाॅफ़ पैंट खोल दी । अब वह पाग़ल पूरी तरह से नंगा था। उसकी इस स्थिति पर तमाशबीनों के पेट में हँसते-हँसते बल पड़ गये। इतने में ही उस सभ्य से दिखने वाले व्यक्ति की जवान पाग़ल बेटी अपने बाप को खोजती हुई वहाँ आ पहुँची । तमाशबीन अब कल्पना में उसके सीने की गोलाईयाँ नापने में व्यस्त हो गये, और वह व्यक्ति सरेआम नंगा हो गया।
आलोक कुमार सातपुते
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