उस राज्य में विपक्षी पार्टी के एक नेता-सह-व्यवसायी की हत्या हो गयी थी। सत्तापक्ष और विपक्ष दोनां ही इस बात पर एकमत थे कि, यह राजनैतिक हत्या है। सत्तापक्ष का कहना था कि, यह हत्या जनाधारविहीन विपक्ष द्वारा हवा बनाने के लिये उन्हीं के द्वारा प्रायोजित है, जबकि विपक्ष का कहना था कि, सत्तापक्ष ने उक्त नेता के बढ़ते जनाधार से भयभीत होकर उसकी हत्या करायी है। मक़तूल का बेटा भी चीख़-चीख़ कर सत्तापक्ष को कोस रहा था। संभवतः यह उसके राजनीति में प्रवेश के लक्षण थे, बहरहाल सभी विपक्षी दलों के बीच राज्यबंद को लेकर सहमति बननी ही थी, और एक दिन-विशेष को राज्यबंद का आह्नान कर दिया गया। बंद के दौरान सूनी सड़कों पर बंद दुकानों को कवरेज़ करते हुए एक टी.वी. पत्रकार ने एक आम आदमी से इस हत्या पर उसकी राय जाननी चाही। इस पर उसका कहना था कि, यह राजनीति की, राजनीति के लिये, राजनीति के द्वारा की गई हत्या की राजनीति है।
यह अलग बात रही कि, टी.वी. पर उस आम आदमी के बयान को संपादित कर दिया गया।
आलोक कुमार सातपुते
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