कुछ रिश्ते अनाम होते हें
बन जाते हें
यूँ हीं, बेवजह, बिना समझे
बिना देखे, बिना मिले ....
महसूस कर लेते हें एकदूजे को
जैसे हवा महसूस कर ले खुशबु को
मानो मन महसूस कर ले आरजू को
मानो रूह महसूस कर ले बदन को
मानो बादल महसूस कर ले गगन को
मानो ममता महसूस कर ले माँ को
कैसे बन जाते हें ...
ये अनायास ... अजनबी रिश्ते
पता भी नहीं चलता ....
जब तक दूर नहीं होते हमसे ....
और तब...
सवाल उठते हें जहन मैं
वजूद पूछते हें रिश्तों का
क्या ये रिश्ता .. पिछले जन्म का है ???
और अगर नहीं ?
तो क्यूँ खींचता है ?
जैसे लोहा खींचे चुम्बक को ...
जज्बात शायद वजह होगी... !!
पर, इतना जज्बाती भी क्यूँ होता है कोई....
कि, जिसको देखा नहीं, सुना नहीं, छुआ नहीं...
महसूस होता है हर कहीं ..
वो एकाएक क्यूँ इतना अज़ीज़ हो जाता है... ?
ये रिश्ता आखिर क्या कहलाता है..??
बोलो ...., बोलो ...न.....
Amod Srivastava
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