Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तुम अपना दर्द मुझे दो

 

तुमने कहा
तुम अपना दर्द मुझे दो
उसें ख़ुशी में बदल दूंगा
मान गई मैं
तुमने कहा
तुम अपने आँसूं मुझे दे दो
उन्हें हँसी में बदल दूंगा
मान गई मैं
तुमने कहा
तुम अपनी दरकन मुझे दो
उसें जुड़ाव में बदल दूंगा
मान गई मैं
तुमने कहा
तुम अपनी रिक्तता मुझे दो
भर दूंगा उसें
नहीं मानी मैं
क्योंकि
रिक्त नहीं थी मैं
नस-नस मैं थी
उसकी याद
हृदय में था
उसका कंपन
कानों में थी
उसकी गूंज
होंठों पर था
उसका नाम
आत्मा में था
उसका संचार
मुझ में पल प्रतिपल था वो
रिक्त नहीं थी मैं
आशा पांडेय ओझा 
 

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