आज कुछ शब्द ये तुम्हारे नाम करती हूँ,
माँ तुम्हें नमन तुम्हें सलाम करती हूँ |
तन्हाइयों में जब अपना बचपन जीती हूँ
तुन्हें रुलाये सारे आंसू मैं घूंट- घूंट पीती हूँ |
अनसुना कर तुन्हें न जाने कितना सताया होगा,
अनदेखा कर तुन्हें, तुन्हारा दिल दुखाया होगा |
जब कोई तीर मेरे शब्दोँ का छूटा होगा,
न जाने तुम्हारे मन का कौन सा कौना टूटा होगा |
मैं सताती रही, तुम सहती रही
मैं रुलाती रही, तुम हंसती रही
तुम दीपशिखा सी जलती रही,
मैं उसी रोशनी में पलती-बढ़ती रही |
इस शब्द की गहराई मुझे तब समझ आई,
जब मेरी अपनी बेटी मेरी गोद में आई |
उस नन्ही सी जान ने सिखा दिया मुझे कि माँ क्या होती है,
चोट अंग को लगे तो आँख क्यों रोती है |
एक ही पल में मैं जी गई तुन्हारे सारे अहसास,
उसी पल बन गई तुम मेरे लिये सबसे खास |
आज जब मेरी बेटी मुझे गुस्से में कुछ सुना जाती है,
तुम्हारी वो सारी पीड़ा जो मैंने तुन्हें दी थी, मेरी आँखो में उतर आती है |
अब गुस्सा नहीँ हंसी आ जाती है,
मैं तुम्हे नहीँ समझी, ये मुझे नहीँ समझ पाती है |
माँ होने के अहसास को ये भी उस दिन समझ जाएगी,
जिस दिन इसकी अपनी बेटी इस की गोद में आएगी |
इंजि. आशा शर्मा
बीकानेर
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