Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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समझ लो!

 

 

सोंचता हूँ अक्सर
और सोंचता रह जाता हूँ
जिंदगी है क्या?
मैं भला किसको तरसता रह जाता हॅू?
एक वक्त का सिलसिला है
जिस पर सिमट रहा हूँ
मैं भी
ढेरों औरों की तरह।
कुछ मिल गया
तो उसकी खुशी से
पल भर को होठों पर हॅसी
पर फिर अगले पल
जब वो नहीं
जिंदगी वैसी ही
उसके बिना सही!

 

 

 

अशीष आनंद आर्य

 

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