राजपथ के किनारे
रात के बादलों से घिरी
एक लड़की को
हवाएं चूमती हैं
और कपडे सहलाते हैं
पर वह खूबसूरत महसूस नहीं करती ,
घसीटती हुई चलती है
अपने पैरों को
कंकरीली धरती पर
दिशाओं में कुत्ते गुर्राते हैं
और फुफकारते हैं नीम के पेड़
प्यार और गोलियाँ ,
वर्षा और विघटन
गले मिलते हैं
दीर्घ उच्छ्श्वास ,
उत्तेजित रोम ,
आत्मविश्वास।
उरोज ठोड़ी की ओर बढ़ते हैं ,
भोंहे कानों की ओर
अस्तित्व के फूल खिलते हैं
एक बार फिर
यकायक भान हुआ है
त्वचा को स्पर्श का
दृष्टि को उपस्थिति का
समाप्त हो गयी है प्रलय
उदय हुआ है आह्लाद का।
उधर तूफानों के परे
आसमान में कहीं
एक ईश्वर
उत्सव और समृद्धि के ढेर में बैठा
देखता है इस सूक्ष्म ,
नगण्य जीवन को
परिवर्तित होते
नापता है उसे अपनी हथेली
की तुलना में
व्यंग्य भरी हंसी हँसता है
द्रुत निश्वास के साथ
बड़ा गर्व है उसे ,
अपनी विशालता पर ,
शक्ति पर ,
त्रिगुणातीत होने पर …
ईश्वर मूर्ख है ,
ईश्वर विपन्न है ,
ईश्वर अपूर्ण है।
ईश्वर एक उपमा है।
Ashish Bihani
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