Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बसंत तो आना ही है

 

बसंत तो आना ही है
नयी कलियों को ये बाग़ महकना ही है

 

 

ज़िंदगी के सफर में कुछ लोग मिले
कुछ से खुशियां और कुछ से रोग मिले
एक प्यारे से मौसम में कुछ फूल खिले
साथ फूलों के कभी कुछ शूल मिले
गुलाब की है चाह अगर तो काटें तो मिलने ही हैं
कुछ फूल कभी पतझड़ में झड़ने ही हैं
अफ़सोस नहीं है पतझड़ का
क्यूंकि बसंत तो आना ही है
नयी कलियों को ये बाग़ महकना ही है

 


आई एक आंधी कुछ ढेर कर गयी
बाग़ के फूलों को थोड़ा बिखेर कर गयी
कभी जो आँखें नम हुई
कुछ बीते पलों से मुलाकातें कम हुई
हर लम्हा एक बात सिखा गया
मेरे अस्तित्व का एहसास दिला गया
आंधियों को तो थमना ही है
क्यूंकि बसंत तो आना ही है
नयी कलियों को ये बाग़ महकना ही है

 

 

 

........Ayushi Gupta

 

 

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