Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हाँ मैं एक लड़की हूँ

 

 

माँ हूँ ,बहन हूँ ,पत्नी हूँ

इस अधूरे समाज की, हाँ मैं एक लड़की हूँ !!!!




वो कली हूँ मैं जो खिल न पायी

बाग़ के फूलों से मिल ना पायी

जो उनके प्यार की निशानी थी

मुझे भी सुनानी अपनी अनकही कहानी थी

माँ की उजड़ी कोख की मैं वो नन्ही लड़की हूँ

इस अधूरे समाज की, हाँ मैं एक लड़की हूँ !!!!




कहने को तो मैं समाज का एक आधा हिस्सा हूँ

बनती जिसकी रोज कहानी हर जुबान का किस्सा हूँ

अँधेरा होते ही सहम जाती है जो

रोज डर के साथ जीती फिर भी मुस्कुराती है जो

घुटन भरे इस माहोल में एक कैदी सी मैं लड़की हूँ

इस अधूरे समाज की, हाँ मैं एक लड़की हूँ !!!!




आधुनिकता के दौर में, देश की हो रही प्रगति है

थमा है जहाँ एक तपका,ये यहां की कैसी गति है

क्यों मांगे हम तुमसे जो सम्मान हमारा है

है तुझको जो अभिमान वो आधा अभिमान हमारा है

हर आंसू जो हंसकर पीती , हर पल जो संघर्ष में जीती , वो इंसान मैं लड़की हूँ

इस अधूरे समाज की , हाँ मैं एक लड़की हूँ !!!!




माँ हूँ, बहन हूँ ,पत्नी हूँ

इस अधूरे समाज की, हाँ मैं एक लड़की हूँ !!!!

 

 

 

Ayushi Gupta

 

 

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