Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जो फुर्सत मिली तो

 

 

जो फुर्सत मिली तो खुद से बात की हमने

कुछ गैरों की कुछ अपनी बात की हमने

एहसास हुआ की अब हम हम न रहे

वो पल वो यादों के मौसम न रहे

अलफ़ाज़ जब मन के परदे उठाने लगे

हम भी उस भीड़ में खड़े नज़र आने लगे

तब सोचा की हममे और उनमे फर्क क्या है

जियो बस खुलकर, किसी की फिक्र क्या है

ज़ज़्बात शब्दों के जाल उलझाने लगे

मायूसियों के दिल में बादल नज़र आने लगे

हम खुद को दुनियादारी समझने लगे

खोयी हुई अपनी खुद्दारी बताने लगे

पर कहीं पता था मन को ये सब बातें हैं

ऐसे ही सोचते हुए कट जानी कुछ और रातें हैं

तभी अंतर्द्वंद से लड़ती हुई कोई आवाज़ आई

बोली की है भरोसा तुमपे , हाँ तुझमे है वो गहराई

जो नहीं हुआ , जो नहीं किया वो बात जाने दो

दिल को बहलाने के रहने अब बहाने दो

वक़्त अब विश्लेषण करने का है

सोचने का नहीं अब कुछ करने का है

खुद ही खुद को समझाने की शुरुवात की हमने

जो फुर्सत मिली तो खुद से बात की हमने

Ayushi Gupta

 

 

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