Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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उड़ान

 


बादलों की चादर तले
ख्वाईशों के आज पंख ओढ़ लूँ
खुदा तेरी जन्नत के
कण कण से रिश्ता जोड़ लूँ

 

 

क्यूँ थी अब तक बाहें समेटे
जी रही थी बस खुदी लेके
मन को क्यूँ थी यूँ सिकोड़े
व्यर्थ बातों में थी मरोड़े
फैलाकर अपनी बाहें ये सारा जहां जोड़ लूँ
ख्वाईशों के आज पंख ओढ़ लूँ

 

 

खामोशियों को मन से मिटा दूँ
हर उदासी मैं दूर भगा दूँ
ना करूँ किसी से शिकवे गिले
सारी उलझनें मन से हटा दूँ
खुली हावाओं से रिश्ता जोड़ लूँ
ख्वाईशों के आज पंख ओढ़ लूँ

 

 

जुदा सा अपना ख्वाब बुनूं मैं
पल पल से खुशियां चुनूं मैं
बनाऊँ एक घरौंदा
एक एक उसके लिए तिनका चुनूं मैं
उम्मीदों से सबकी अपने सपने जोड़ लूँ
ख्वाईशों के आज पंख ओढ़ लूँ

 

 

हर सांस में अपनी विश्वास भरूं मैं
कुछ कर गुज़रने की प्यास भरूं मैं
ये फैला अँधेरा मिटाकर
हर एक कोना रोशन करूँ मैं
दीप से दीप की कतार जोड़ लूँ
ख्वाईशों के आज पंख ओढ़ लूँ

 

 

 

.....Ayushi Gupta

 

 

 

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