Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अब ना सीखे, तो फ़िर कभी ना सीखे

 

अब ना सीखे, तो फ़िर कभी ना सीखे.....

 

क्या उड़ाएंगे हम किसी का मज़ाक ?

हम खुद बन गए हैं अब एक मज़ाक ।

 

बहुत था ख़ुद पर अभिमान,

अहंकार, शेखी, मद से बखान ।

 

आज सब धरा का धरा,

क्रोधित प्रकृति, नम है धरा ।

 

बहुत करा है तिरस्कार,

स्वार्थ, प्रलोभन, मलिन संसार ।

 

ईर्ष्या, क्रोध, किस किससे जंग,

बहुत कसे दूसरों पर तंज ।

 

लुप्त हुए आदत सत्कार,

व्यंग, उपहास, तिरस्कार ।

 

रहन सहन का बदला ढंग,

हुए तन्हा, ना कोई तरंग ।

 

गिले शिकवों की जैसे बाड़,

बंजर अहसास, रिश्ते उजाड़ ।

 

अपनी ना कभी दिखती गलती,

ख़ुद को छोड़, हर एक पे सख़्ती ।

 

बहुत आदतें हो चुकीं खराब,

ना कद्र, परवाह, बस ख़ुदके ख़्वाब ।

 

षड्यंत्र, धोखा, फरेब, साज़िश,

मलिन राजनीति, वैर व रंजिश ।

 

सेवा भाव की जगह अहसान,

भूले हम गीता व कुरान ।

 

मैं भगवान, मेरे गुणगान,

मेरे माफिक ना कोई इंसान ।

 

मेरी हरदम इज्ज़त व पूछ,

तू व्याकुल, लूं मैं आंखें मूंद ।

 

ऊपरी नाते, बनावटी संबंध,

कलह उत्पात असंख्य द्वंद ।

 

एक की टोपी दूजे सर,

छल कपट सबसे ऊपर ।

 

प्यार प्रेम हो गए हैं गुम,

दया करुणा बेबस गुमसुम ।

 

आते बाहर बिल से तब,

जब होता कोई मतलब ।

 

लापता बंधुत्व, ओझल भाईचारा,

रखवाला अब बना हत्यारा ।

 

धर्म बिकाऊ, बिकते अरमान,

सबसे ज़्यादा चले ये दुकान ।

 

ये कारोबार चले चौबीसों घंटे,

बेवजह नादां इंसां बंटते ।

 

निर्दोषों को मिलती सज़ा,

कलयुग में ना कोई जगह ।

 

रोशनी भरपूर, है चकाचौंध,

दिल पर काला, देते रोंद ।

 

खोखले दावे, मिट चुका वजूद,

कोशिश कि सब मिटें सबूत ।

 

करते दिल की, हम मनमानी,

दूजे को है नसीब ना पानी ।

 

काला बाज़ारी, काले धंधे,

क्या क्या नहीं अपनाते हथकंडे !

 

शुद्धता मार करे राज मिलावट,

सच्चाई तड़पे, हो घबराहट ।

 

पट्टी बांध, हुआ अंधा कानून,

मई से पहले आ गया जून ।

 

रक्षक बन गए कुंभकर्ण,

ना कोई हया, ना कोई शर्म ।

 

वातावरण भी बेहद मलिन,

व्यावसायिक हर शय, प्रदूषण रात दिन ।

 

अपराध ये जाएं जल्दी थम,

कुदरत ले रही ठोस कदम ।

 

कुदरत लेने ये संज्ञान

ख़ुद उतरी, भयभीत हर इंसान ।

 

देख हमारे लोभ प्रयोजन,

प्रचण्ड रूप धारण, लिया पुनर्जन्म ।

 

माना ये है बेजुबान,

ये चोकस, ना है अंजान ।

 

प्रकृति फिर से हो रही तैयार,

नए मायने इजाद, नव आविष्कार ।

 

रावण का शीघ्र होगा विनाश,

जल्दी लंका दहन की आस ।

 

लेलें समय से हम सबक,

खोलें आंखें, जाएं सुधर ।

 

करें सम्मान, रखें सिर को नीचे,

संयम धीरज ना अब रहें पीछे ।

 

रहें सरल, करें प्रेम व प्यार,

आपसी सद्भाव, अच्छा व्यवहार ।

 

क्या चाहिए - यह ख़ुद से पूछें,

अंतर्बोध से सब कुछ बूझें ।

 

दूसरे की कमी, ना निकालें कभी,

बनें मिसाल, हो नेक छवि ।

 

बनें करुणामय, बदलें तौर तरीके,

अब ना सीखे, तो फ़िर कभी ना सीखे...

अब ना सीखे, तो फ़िर कभी ना सीखे...

 

विचार प्रस्तुती - अभिनव ✍????

 



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