Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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भगवान परशुराम जी की महिमा

 

भगवान परशुराम जी की महिमा 

करें स्वीकार नमन भगवान परशुराम,

त्रेता व द्वापर युग में अवतरित नाम ।     2

 

रामायण, भागवत पुराण,

महाभारत और कल्कि पुराण ।    

 

इन ग्रन्थों में उनके उल्लेख, 

परशुरामजी के रूप अनेक ।     6

 

देवराज इंद्र का था वरदान,

तभी उदय, तभी आविर्भाव ।     8

 

'जामदग्न्य' भी था दूसरा नाम,

रेणुका, जमदग्नि की संतान ।     10

 

पाँच सहोदर में थे वे अनुज,

आज्ञाकारी वे थे अद्भुत ।        12

 

माता पिता के थे अनन्य भक्त 

जिस्म में जैसे रहता रक्त ।       14

 

मात पिता प्रति पूरा समर्पण, 

हर शय थी उनके लिए अर्पण ।     16

 

सदा बड़ों का करते वे सम्मान,

ना कभी अवहेलना, और ना अपमान ।     18

 

वीर थे, अदम्य दे,

साहसी दे, वे क्षम्य दे ।     20

 

विष्णु जी के छठे अवतार,

अलग ही महिमा, पैनी धार ।    22 

 

शिव जी के परम भक्त,

शंकर से विशेष परशु प्राप्त ।    24

 

विश्व कराने क्षत्रिय दमन से मुक्त,

इसी कारण लिया इन्होने जन्म ।   26

 

क्षत्रियों का किया बारंबार विनाश,

निभाई परंपरा, हर्षित आकाश ।   28

 

अक्षय तृतीया पे ये जन्मे,

इस अवसर पर पर्व हैं मनते ।     30

 

विद्वान ऋषि और मुनि,

उसूल के पक्के, थे ये धुनि ।      32

 

शस्त्रविद्या में थी महारत हासिल, 

सैन्यशिक्षा में निपुण प्रवीण ।       34

 

पशु-पक्षियों की समझते थे भाषा,

कहते समझते बातें साझा ।        36

 

प्राकृतिक सौंदर्य से था गहरा लगाव,

रहे सृष्टि जीवंत, था ऐसा भाव ।     38 

 

ब्राहमण होने के बावजूद,

श्राप हेतू गुण क्षत्रिय मोजूद ।        40

 

दुर्वासा की ही भाँति,

क्रोधी स्वभाव से मिलि विख्याति।     42

 

एक बार की बात है घटना दुखद घटी,

सरितास्नान के लिये गई माता रेणुका नदी ।      44  

 

वहाँ गंधर्व चित्ररथ था अप्सराओं के साथ,

जलक्रीड़ा था कर रहा, जैसे हो उन्माद ।          46

 

देख उसे रेणुका हो गई जैसे मंत्रमुग्द,

इसी वजह प्रत्यागत में हो गया उसे विलंब ।       48 

 

पितृ जमदग्नि को अन्तर्मन से ये सब हो गया ज्ञात, 

क्रोधित चिंतित हो गया, जैसे हो बदहाल ।         50

 

पांचों पुत्रों को दे डाला उसने एक फरमान,

माँ का वध वे शीघ्र करें, जल्दी निकले जान ।       52

 

चारों भ्राता ना हुए इसके लिए तैयार, 

परशुराम ने माँ ली ये भी पिता की बात ।          54 

 

जमदग्नि चारों पुत्रों से हुए बिल्कुल खफ़ा,

जड़बुद्ध हो जाने का शाप दिया रो पड़ा ।         56

 

पिता के आदेश का किया अनुपालन,

किया माँ का वध, भावुक पर मन ।              58

 

परशुराम की आज्ञा मानने पर पिता हुए प्रसन्न, 

बोले परशु मांग ले जो भी चाहिए वर ।            60

 

बोला परशु पिता श्री वर मुझे दो दे दें ,

माता और चारों भ्राता को पुनः जीवित कर दें ।      62

 

कुछ पल सोच पिता श्री ने चाहा सबका हित,

वर देके फिर हो गए माँ भ्राता जीवित ।           64

 

एक बार की और है ये बात, 

कार्तवीर्य ने दिया आश्रम उजाड़ ।            66     

 

उस वक़्त परशुराम अनुपस्थित,

आकर देख ये हुए वे क्रोधित ।           68

 

पहुंचा उनको बहुत आघात, 

सहस्त्र भुजाएँ कार्तवीर्य की दीं काट ।        70

 

पितरों की आकाशवाणी सुन,

क्षत्रियों से उन्होने छोड़ा युद्ध ।        72

 

पहले २१  बार क्षत्रिय-विहीन की धरा,  

अब लगाया ध्यान, शुरू की तपस्या ।      74

 

रामचन्द्र ने तोड़ा जब शिव का धनुष,

तब भी परशुराम हुए थे क्रुद्ध ।          76

 

परिक्रम परीक्षा के लिए काम किया, 

राम को अपना धनुष दिया ।            78

 

रामजी ने जब धनुष चढ़ा दिया,

परशुराम को भली भांति ज्ञात हुआ ।      80

 

समझ गए कि राम विष्णु अवतार,

की उनकी वन्दना, चले तप की और ।     82

 

कहि जय जय रघुकुल केतू, 

भुगुपति गए बनहि तप हेतु ।            84

 

'राम चरितमानस' में यह वर्णन, 

प्रथम सोपान दोहों में ये दर्पण ।          86

 

पृथ्वी परशुराम के लिए ऋणी कृतज्ञ, 

जीवनकाल में किए उन्होने अनेक यज्ञ ।     88

 

बड़े होने पर परशुराम ने किया शिवाराधन,  

नियम पालन देख हुए शिव प्रसन्न ।         90

 

शिव ने उन्हें दैत्य हनन की दी आज्ञा,

परशुराम ने युद्ध में शत्रुओं का वध किया।    92 

 

इस प्रक्रिया में उनका शरीर हुआ क्षत-विक्षत,

शिव ने दिए उन्हें कई वरदान होकर हर्षित ।    94

 

परशुराम के शरीर पर हुए जितने प्रहार,

नेमत की उतना अधिक उन्हें होगा देवदत्व प्राप्त ।    96 

 

शिव ने किए उन्हें अनेक दिव्यास्त्र प्रदान,

पूजा आराधना आज्ञा पालन का ये परिणाम ।     98

 

कर्ण ने अपना सही परिचय छिपा,

परशुराम से ली अस्त्र शस्त्र की शिक्षा ।          100

 

जब परशुराम को पता चला,

कर्ण क्षत्रिय वंश से है जुड़ा ।         102

 

श्राप दे दिया होकर व्याकुल, 

अस्त्र शस्त्र विद्या कर्ण जाएगा भूल ।      104

 

इसी कारणवश हुई कर्ण की मृत्यु, 

काल चक्र का बन गया पिट्ठू ।          106

 

सहायक, कृपालु, न्यायप्रिय, निष्पक्ष, 

श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र कराया उपलब्ध ।     108

 

गणेशजी ने शिवदर्शन से दिया जब रोक, 

रुष्ट हुए परशुराम, की जब चोट ।          110

 

गणेश जी का एक दांत हुआ नष्ट, 

तभी से वे कहलाए जाते एकदंत।           112

 

चिरंजीवी हैं, वे अमर हैं, 

चिरस्थायी हैं, अचल हैं ।                114

 

उनकी महिमा अपरमपार,

श्रद्धा सुमन करें स्वीकार ।              116

 

आत्म मंथन प्रयास – अभिनव (“अभी”) 

 

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