Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कहूँ ऋषि कपूर या कोहिनूर

 

कहूँ ऋषि कपूर या कोहिनूर


कहूँ ऋषि कपूर,

या कोहिनूर 

है एक ही बात

है एक ही बात । 4


नाम किया अपना सार्थक,

तप किया था अंत तक,

सब अपने बलबूते पर,

चूम लिया था अंबर ।         8


चॉकलेटी छवि,

प्यार की पदवी

था जैसे रवि,

आकर्षित सभी ।             12


निर्मातानिर्देशक,

अभिनेता आकर्षक,

चलता था अनथक,

होते पागल थे दर्शक । 16


मिस्टर चिंटू

ना कोई किंतू,

था चन्द्र बिंदू,

मुस्लिम और हिन्दू ।         20


पूत के चरण,

पालने में आए नज़र,

बचपन में ही दिखी झलक,

भविष्य का कुलदीपक । 24


३ साल से अभिनय शुरुआत

'श्री 420' में किया था काम,

सबके दिलों पर किया था राज,

अभिनव अदाकारी, थे अलग अंदाज़ ।      28


पाँच दशक तक चलचित्र,

श्रम प्रयास सफलता मंत्र

बिखेरा चारों तरफ इत्र,

गज़ब जुनून, आदर्श चरित्र ।             32


रोमानी दौर को किया आरंभ,

सिने जगत के थे वो स्तम्भ,

किरदार में गुम, करते थे दंग,

मनमोजी वो, मस्त मलंग ।                   36


राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता,

सारे वर्ग का था चहेता,

हँसता, हँसाता और संजीदा, 

मँझा हुआ वो था अभिनेता । 40


थी परिपक्वता,

जैसे घर का बड़ा,

बरगद क पेड़

हरदम मुस्तैद ।                            44


ऐसा था काम

जैसे चारों धाम

अब पूर्ण विराम

अब पूर्ण विराम ।              48


था इक्का पत्ता,

उसकी थी सत्ता

ऐसे अभिनेता,

इतिहास रचयिता ।            52


माना मिली विरासत,

पर काफ़ी मुशक्कत

जन्मजात काबिलियत,

अच्छी भी नीयत ।            56


वो था गुलदस्ता,

हरदम था हँसता,

गुलशन महकाता

उसमें रब बसता ।           60


था बेहतरीन

जैसे नई दुलहिन,

वो आफ़रीन,

जैसे पहला दिन ।            64


था लाजवाब,

हम सबका ख्वाब,

कितने ही ख़िताब

वो खुली किताब ।           68

ऐसा अदाकार,

था सदाबहार,

यारों का यार

था भी खुद्दार ।               72


अर्जित की शोहरत,

और साथ में दौलत,

माना अच्छी किस्मत

काफ़ी पर मेहनत ।         76


बेहद खूबसूरत,  

दिल दया की मूरत,

था छैला सुंदर,

रूप जैसे समुंदर ।           80


था एक मिसाल

उसका ही ख़याल,  

चित्त बहुत विशाल,

वो बेमिसाल ।                84


था ज़िंदादिल

वो था खुशदिल

आभा झिलमिल,

था प्रगतिशील ।              88


था सुबह की ओस

भरसक था जोश,

करता मदहोश,

वो था फिरदौस ।            92


सच्चा देश भक्त,

वो जैसे दरख़्त

आतंक पे सख़्त,

जो दिल में – व्यक्त ।        96


जनता से की अपील,

एकजुट होकर मिलेगी जीत

हिन्द का हर पल चाहा हित

वो बेबाक, वो था पुनीत ।        100


दिल लेता था छू,

जैसे कोई ख़ुशबू,

मंत्रमुग्ध देह रूह,

कीर्ति यश आबरू ।            104


था जैसे जादूगर,

बड़ा गहरा असर,

छाप छोड़ी अमर,

प्रभाव अक्सर ।                  108


प्रसन्नचित्त व्यक्तित्व,

ऊर्जा से लिप्त,

संतुष्ट व तृप्त,

गुण अनन्य, ना संक्षिप्त ।      112


बहुआयामी जीवंत,

योगी जैसे संत,

मुस्कान सदैव अनंत

गीता क़ुरान का ग्रंथ ।              116


जीवन के कई रूप,

कभी छाँव, कभी धूप,

उतार छड़ाव भरपूर,

चुनोतियाँ मगर मंज़ूर ।            120


प्रतिभा अपरामपार,

गलतियाँ स्वीकार

भावुक इनसान,

अतुलनीय, प्रथम स्थान ।           124


दिग्गज कलाकार,

बिलकुल दमदार

ना मानी कभी हार

चट्टान दीवार ।                      128


राजनीति से फासला,

महारत हर एक कला,

मोहब्बत का सिलसिला,

ना कोई मुक़ाबला ।               132


असाधारण अभिनय कौशल,

मानवीय रिश्तों का दर्शन,

याद करे हर मन,

नतमस्तक अभिवादन ।        136


किंवदंती महानायक,

परिपूर्ण विनायक,

अद्भुत और लायक,

मददगार सहायक ।            140


पीढ़ी दर पीढ़ी,

मनोरंजन की सीढ़ी

उपयुक्त हर शैली,

ख्याति तभी फ़ैली ।             144


उम्र का हर पड़ाव,

आया अनुभव व निखार

निष्ठा थी आधार,

भद्र सभ्य संस्कार ।             148


युवा दिलों की धड़कन,

देख झूमता तन बदन,

बेशकीमती आभूषण,

प्रचुर जज़्बा और अगन ।      152


ऐसी श्रेष्ठता को नमन,

यथासाध्य थी लगन,

थी रौनक और चमक

धरा गर्वित और गगन ।        156


था आत्मीयता का संबंध,

इंसानियत की गंध,

एक युग का अंत...

एक युग का अंत...              160


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