Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आँख जब बहाने लगे

 

आँख जब बहाने लगे,
दुख महसूस होती,ही
वो भी रो दे हमारे रोती,ही
दर्द को भूल कैसे नीद आती,मुझे
मै रहा करवटे बदल दुनिया,के सोती ही
वो भूल ग़ए हमको
हमसे आँख चार करके,
हम याद करते है
उनको दिल से उतार कर भी,
अब राहो मे फासले और,आ जाऐगे
करीब होते थे कभी
दिल,मे बसी धडकन की,तरह
वो अब आते नही
मिलने हमसे
पहेले आते थे जैसे
साजन की तरह

 

 

 

आभिषेक जैन

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