Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

आपके ही गुनगाये जा रहे,है

 

 

आपके ही गुनगाये जा रहे,है
उनकी भूख बढ चूकी,है,इसीलिऐ तो खाऐगे जा,रहे है
गरीबी मिटा देना
अमीरी कर दो बारिस
इसालिऐ तो आपको
ये भोग यहा लगाऐ जा,रहे है
आप बहुत भोली हो
चंचल माया हो
सुदंर काया हो
मेरे घर को गरीबी
की धूप से बचाने
वाली छाया हो
किये होगे कोई अच्छे काम,
इसालिऐ तो आपको पाये,जा रहे है
मेरी हेबली की रोनकता,
मे चार चाद लग जाऐगे,
आपने चाहा तो कभी
नही हमारे गरीबे के दिन,आऐगे
इसी कारन आपको
मशका लगाये जा रहे है,
जो कंजूसता से रहता है
आपकी दया का दारिया,उसके ही घर से
बहता,है
जो आपकी माहिमा
का गुणगान,किया
करते,है
वो ही यहा शान से जीया,करते है
आपकी माहिमा
को सुनते,और सुनाई जा,रहे है

 

 

 

Abhishek Jain

 

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ