Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आँसू गम को दिखाने लगै

 

 

आँसू गम को दिखाने लगै

मुश्कले मिरी बढाने लगे

आँखे से नीद गायब हो ग़ई

जागती आँखो से ख्वाब आने लगे

चाहत का सिला सिल रहा पलभर

चाहत मे रंज हम उठाने लगे

जहा मिलते थे अक्सर छुप छुपके

हम तो आज भी जाते है

और आप रूसवाई से घबराने लगे

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