Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बचपन से लेकर जवानी दुख झेलती आई हो तुम

 

 

 

बचपन से लेकर जवानी दुख झेलती आई हो तुम

हर सितम को हँसकर झेलती आई हो तुम

कभी गाव मे होता है तुम

पर अत्याचार कभी शहर को भी झेलती आई हो तुम

कभी बेटी बनकर जुल्म को सहती रही

 कभी यौनी के दुख झेलती आई हो तुम

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