Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

बहा है खून दारिया

 

 

बहा है खून दारिया दिल मे आग बसती है
जली है गरीब की कुटिया मिली दानव हस्ती है
चले जो लोग घर से वो पहुचे नही माजिलतक
देखकर ये सारा खेल मानवता सिसकती है

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ