भूख भी यहा निशा छोड जाती है
पेट की खातिर गरीबी मकान छोड जाती है
नही मिलता जब भूखे को खाना
मजबूरी फिर अपना ईमान छोड जाती है
आता है गुस्सा जब गरीबो को तब
जनता आके नेताजी के मकान तोड जाती है
भूख बना देती है मुजरिम यारो
यही तो अच्छाई के घर मे शैतान छोड जाती है
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