देश को खाते रहे
देश को खाते रहे
दीमको से हम इधर घर को बचाते रहे
और कीडे कुरसीयो के देश को खातै रहे
हम इधर लडते रहे आपस मे दुश्मन की तरह
उधर उस पार सरहद से घुस पोठिया आते रहे
जल रहा था देश दंगो सेधमाकौ से
शीशमहल मे वे जाम टकराते रहे
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