Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

देश को खाते रहे देश को खाते रहे

 

देश को खाते रहे

देश को खाते रहे

दीमको से हम इधर घर को बचाते रहे

और कीडे कुरसीयो के देश को खातै रहे

हम इधर लडते रहे आपस मे दुश्मन की तरह

उधर उस पार सरहद से घुस पोठिया आते रहे

जल रहा था देश दंगो सेधमाकौ से

शीशमहल मे वे जाम टकराते रहे

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ