Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दिल उसको आज भी ढूढता,है

 

 

दिल उसको आज भी ढूढता,है
वो सुनहारी शाम से
किसी कोने मे छिपी,होगी
हुई होगी वो नाराज किसी,से
ठेस उसे भी अपनो से लगी,होगी
अब तो यही सोचने पर,हुआ मै मजबूर यहा,
वो खुशी की सुनहारी
किरन,होने को तो कही,होगी
वो भूख को देखकर उदासी बन ग़ई है क्या,
अब उसके चेहरे पे भी ,नमी होगी
वो जमकर हो ग़ई होगी,सख्त यहा,
कही तो वो तालाब
के पानी,तरह जमी,होगी
रो रहा तुम हुआ कुछ कारन,होगा
रूलाया तुझको जिनने,शायद उनकी सोच मे,कुछ कमी होगी

 

 

 

आभिषेक जैन

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