Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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एक ऐसी यात्रा को निकलना,है मुझे

 

एक ऐसी यात्रा को निकलना,है मुझे
जो कभी खत्म ना हो,
मेरे मरने के बाद भी नही,
डायरी मे लिखा हर एक पन्ना भरना है मुझे,
भीड भाड से दूर सफर
करना है मुझे
दूर से पानी का गिरना
पहाड से धुआ का ऊठना,
एक किनारे का दूसरे
से इस कदर मिलना,
जैसे कोई लगाव हो
उनमे,
वो जंगल की मस्ती
बारिश की कश्ती
फिर दिखना,है मुझे
सुकुन का एहसास
हो वहा,
शान्ती जहा की
मन को बाध ले मेरे
लोग ऐसे मिले
जैसे दिल से मिलते है
उनके अंदर अपनापन
ऐसा
देखके
मन को राहत मिले
फिर कोई हमे रुठी
जैसी,चाहत मिले

 

 

 

 

आभिषेक जैन

 

 

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