एक गरीब बच्चे की आँख,मे नमी थी
शायद पैसे की उसके पास,कमी थी
वो जहा खडा था चौराहे,वाली दुकान पर,
वहा के सेठ जी के यहा,गडिया,नोटो की जमी,थी
फिर भी जाने क्यो वह,सता रहा,था
खुद को कर्म वीर
उसको कमचोर बता रहा,था
तभी वह भूख का मारा,
हीन वो बेचारा
बहुत कुछ आँख से
बता,रहा था
अपनी मजबूरी
पर अफसोस जता रहा,था
मैने देखकर मन के अंदर,खुद को टटोला,
फिर दीन दयाल
जी,का राज खोला
और बताया
सेठ जी बडे दयालु है
गर्मी मे मानो सडे
हुऐ आलू,है
तभी एक व्याक्ति ने
बोला-अरे जरा
सोच कर बोला
कीजिऐ
अपनी जुबा को उनकी,तराजू की तरह
ना तौला कीजिऐ
वो तो दिन मे कम तौला,करते है
और जोर से बापू की
जय,बोला करते है
आभिषेक जैन
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